हैद्राबाद स्वाधीनता संग्राम के फिल्ड मार्शल : स्वामी स्वातंत्रतानंद सरस्वती

हैद्राबाद स्वाधीनता संग्राम के फिल्ड मार्शल : स्वामी स्वातंत्रतानंद सरस्वती

 

डॉ.संजय तोंडारकर

इतिहास विभागप्रमुख

उज्ज्वल ग्रामीण महाविद्यालय,

घोणसी ता.जळकोट जि.लातूर

 

प्रस्तावना

 

स्वातंत्र्यपूर्व भारत में ५६५ संस्थान थे. इनमें से ५६२ संस्थान भारत या पाकिस्तान में शामील हुए. मात्र तोन संस्थान कश्मीर, जुनागड़ और हैद्राबाद भारतीय संघराज्य में शामील नहीं हुए. इसमें से हम हैद्राबाद संस्थान को जानकारी लेंगे. हैद्राबाद का सत्ताधीश पहला निजामुलमुल्क शहाबुद्यीन का पहला बेटा जिसका नाम कमसरुद्दीन था उसका जन्म १६७१ में हुआ. पिता की मृत्यु के बाद मुगल बादशहा ने मौर कमरुद्दीन को गुजरात का प्रांताधिकारी बना दिया और मीर कमरुद्दीन को दिल्ली में मुगल सत्ता में अपना कार्य दिखाने की कोशिश में लगा. १७१९ में कमरुद्यीन को दक्षिण में भेजा गया. मुगल सप्राट फारुखसियर ने कमरुद्दीन की वफादारी देखकर उसे निजामुलमुल्क फिरोज जैंग चिन किलीज खान' (छोटा शमशेर बहादूर) पदवी दी और उसे दख्खन का सुभेदार बना दिया. मुगल समग्राट औरंगजेब कि मृत्यु के बाद मुगल सम्राट आपस में लड़ने लगे और सत्ता कमजोर हुई. ३१ जुलाई १७२४ में मीर कमरुद्यीन ने हैद्राबाद राज्य को घोषणा को. कमजोर मुगल सम्राट महम्मशहा ने मीर कमरुद्योन को '*आसिफजाह' किताब दिया इसलिए आसिफजाह, आसफजाही, आसफिया, अफिसजाही वंश कहा जाता है.

 

१८ जुलाई १९४७ में ब्रिटीश सरकार ने भारतीय स्वतंत्रता कायदा पास किया. इसी के आधार पर १५ अगस्त १९४७ को भारत आजाद हुआ तो भारत में कुल ५६५ संस्थान थे अनेक भी स्वतंत्रता प्रदान कौ गयी कौ वे भारत या पाकिस्तान में शामील हो सकते हैं या स्वतंत्र रहना आपका अधिकार दिया. इसीलिए ५६२ संस्थानिकां ने भारत और पाकिस्तान में शामील होने के लिए शामीलनामा पर हस्ताक्षर किए. किंतु ११ जून १९४७ को हैद्राबाद के निजाम ने हम स्वतंत्र रहनेवाले है यह घोषणा कर दी. भारत सरकार और हैद्राबाद संस्थान की जनता के सामने द्विधा अवस्था निर्माण हुई क्‍्योकि हैद्राबाद संस्थान भारत के बिचोबीच और बड़ा था. भारत को यह संस्थान विलीन करने से ही पूर्ण आजादी प्राप्त हो सकती थौ. हैद्राबाद कौ जनता निजाम के खिलाफ थी क्योंकि उसके अलग-अलग नियमों से प्रजा को बेहाल किया. धार्मिक और सामाजिक अत्याचारो का कोई ठिकाना न था. इसीलिए प्रजा ने सत्याग्रह किया, सशस्त्र आन्दोलन किया. १३ सितम्बर १९४८ में भारत सरकार ने लष्करी कारवाई (पुलिस अँक्शन) की और १७ सितम्बर १९४८ को हैद्राबाद भारत में विलीन हुआ. भारत में विलीनीकरण करने के लिए आर्य समाज का बड़ा योगदान है. इसी आर्य समाज के अनेक विद्वानो में से एक है. स्वामी स्वातंत्रतानन्द सरस्वती जिन्हांने हैद्राबाद स्वाधीनता संग्राम सत्याग्रह का नेतृत्व किया.

 

स्वामी स्वातंत्रतानन्द सरस्वती

जन्म वि. संवत १८३४ के पोष मास की पौर्णिमासी को हुआ. १८७७ में पंजाब राज्य के लुधीयाना के निकट मोही ग्राम में जाट परिवार में हुआ. उनका नाम केहरसिंह रखा गया. माता श्रीमती समांकौर एक गृहिनी थी और पिता श्री.भगवान सिंह सेना में उच्च अधिकारी थे. आगे बड़ोदा रियासत में वे सेना प्रमुख बने. वैसे तो पंजाब में लोग सेना में भर्ती होने में रुची रखते थे. इसोलिए पिता की इच्छा थी की बेटा केहरसिंह सेना में भती हो और अपना योगदान दे. माता श्रौमती समाकौर के निधन के बाद तो छोटा भाई श्री.नौरगसिंह की उप्र केवल ९ दिन की थी. इसीलिए पालन पोषण के लिए ननिहाल के लताला कस्बे में नानी श्रीमती महाकौर के पास जाना पड़ा और नानी ने आपका पालन पोषण किया. लताला कस्बे में उदासी पंथ डेरे के महन्त श्री.पंडित किशनदास के संपर्क में आकर केहरसिंह पर वैदिक धर्म को छाप पड़ी. पंडित 'किशनदास संस्कृत, सुयोग चिकित्सक, आर्य समाज के प्रभाव में आकर वैदिक धर्मीय विचारों के पंडित बन गये थे और इनकी छाप बाल केहरसिंह पे पडुकर वे प्रभावित हुए और वैदिक धर्म कि ओर झुकाव हुआ. प्राथमिक शिक्षा मोही ग्राम और लताला ग्राम में हुई. बाद में पिताजी के साथ रहकर जालंधर छावनी और पेशावर के विक्‍्टर अंग्रेजी स्कूल में मिडल क्लास कौ शिक्षा प्राप्त कौ. समाज मान्यताओं के नुसार छोटी उप्र में ही उनका विवाह हुआ. कुछ दिनों बाद उनको पत्नी को मृत्यू हो गयो और केहरसिंह ने अखंड ब्रम्हचारी रहने का निश्‍चय किया.

 

संन्यास

केहरसिंह के पत्नी की मृत्यू के बाद उनका स्वामी ईशानन्द महाराज से सवाल जबाब हुआ और उन्होने ब्रम्हचर्य जीवन का तत्व बताया. तब केहरसिंह ने संसारिक बंधनों से मुक्‍त होने का निश्‍चय कर लिया और गृहत्याग किया. तीन वर्षां तक वे भारत भ्रमण करते रहे और फिरोजपुर जिले के परवरनडू नामक ग्राम में संन्यास के गुरू श्री स्वामी पूर्णानन्द महाराज से संन्यास को दीक्षा २३ वर्ष को आयु में ली. पंडित स्वरूपदासजी से उन्हाने वेद दर्शन, व्याकरण का अध्यापन, यूनानी और आयुर्वेदिक ज्ञान का मुसलमान मौलवी अबुल हक जी से अध्ययन किया.

 

केहरसिंह स्वामी स्वातंत्रतानन्द सरस्वती केसे बने?

पंजाब के अमृतसर से हरियाना कुरुक्षेत्र के मेले में आपने संसारिक वस्त्र त्याग दिये और दिनभर में एक ही समय भिक्षा मौंगकर उसी का भोजन ग्रहन करते थे. ज्यादातर समय साधना में व्यतीत होता था. विरक्‍तों की टोली में मिलकर वे भारत भ्रमण पर निकल पडे. आपने साथी साधू को निराले ढंग से वैदिक संस्कार दिया करते क्‍योंकि उस समय पौराणिक रुढ्रीवाद का कुप्रभाव भारत वर्ष में गहरा हुआ था. इसीलिए सामान्य जनता और साधू लोग वैदिक धर्म कौ बातें करने या दर्शन सुनने के लिए तयार न थे. अगर कोई सुन भी लेता तो उसे नास्तिक कहकर अपमानित किया जाता. निराले ढंग से वैदिक संस्कार और दर्शन देने का अलग ही अंदाज था. वे वैदिक सिद्धांतों पर चर्चा करवाते और स्वतंत्र विचार सबके सामने रखते थे. इसो कारण आपको स्वातंत्रतानन्द नाम से पुकारा जाने लगा और आगे चलकर वे स्वामी स्वातंत्रतानन्द सरस्वती बन गये.

 

आर्य समाजी केसे बने?

भारत भ्रमण करने के बाद पंजाब के लताला में पहुंचने पर पंडित किशनदासजी ने स्वामी स्वातंत्रतानन्द सरस्वती जी से कहा कि निष्प्रयोग भ्रमण न करें, यह सब व्यर्थ है. देश सेवा और धर्म प्रसार के लिए आर्य समाज के साथ मिलकर कार्य करने के लिए उन्हाने प्रोत्साहित किया. उत्तम व्यवहार, साधना, तपस्या और उच्च आचार को वजह से आप आर्य समाज को ओर आर्कार्षित हुए. महर्षी दयानंद सरस्वती का जीवन, विचारधारा, दर्शन और जिज्ञासा इनके रहस्य के लिए आपने आर्य समाज साहित्य का अध्ययन नहीं किया था. पंडित किशनदासजी के कहने पर पवित्र, पावन प्रेरणा से आप आर्य समाजी बने. वही पर वैदिक सिद्धांतों का, आर्य विद्रानों का व्याख्यान, प्रवचन का आप पर गहरा असर हुआ और आप आर्य समाज के पंजाब राज्य के जिला फिरोजपुर के मोगा ग्राम में आर्य समाज उत्सव में वे सम्मिलित लिए सर्मारपंत होने लगे. रामामंडो में आपने आर्य साहित्य का अध्ययन किया. महषी दयानंद सरस्वती के वेदभाष्य, त्रश्वेदादि भाष्य भुमिका, सत्यार्थ प्रकाश और संस्कार विधि के अध्ययन से उन्हें प्रबल प्रेरणा मिली और आपने आर्य समाज में प्रवेश किया और जी जान से आर्य समाज की सेवा कौ.

 

हैद्राबाद स्वाधीनता संग्राम में योगदान

 

मुगल सम्राट फरुखशियर ने १७१३ में मोर कमरुद्योन निजाम उलमुल्क फिरोजगंग खान खानानचिन कुलीजखान को दख्खन का सुभेदार नियुक्त किया. दखान का सुभेदार बनकर मीर कमरुद्यीन  मुगलशाही में कार्य करने लगा. औरंगजेब बादशहा को मृत्यु के बाद सत्ता कमजोर हुई, आपस में संघर्ष होने लगा. अंत में सत्ता कमजोर और अस्थिरता का माहौल बना तो निजाम कमरुद्यीन ने ३१ जुलाई १७२४ में स्वतंत्र हैद्राबाद राज्य की घोषणा की. मुगल बादशहा महम्मदशहा ने निजाम कमरुद्यीन को आसिफजाह का किताब दिया. हैद्राबाद राज्य में मराठवाडा, कनांटक और तेलंगणा का समावेश था. राज्य की वार्षिक आय सन १९५१ के पहले ५९,००,००० लाख थी, सन १९३६ में ८ करोड ५६ लाख '५० हजार हो गयी. जनसंख्या को बात करे तो ७० प्रतिशत हिंदू, १८ प्रतिशत दलित, ११ प्रतिशत मुसलमान और ०१ प्रतिशत अन्य जाति-जनजाति का समावेश था. हैद्राबाद राज्य में धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकार देने की गुजारिश की गयी लेकिन उसका असर निजाम पर नहीं हुआ. इसीलिए हिंदू महासभा, स्टेट काँग्रेस और आर्य समाज ने सत्याग्रह शुरू किया. प्रस्तुत शोधनिबंध में आर्य समाज का विचार करेंगे.

 

सन १९३२ में आर्य समाज के जानेमाने उपदेशक पंडित चन्द्रभानजी को हैद्राबाद रियासत से निष्कासित किया गया और उनका हैद्राबाद रियासत में प्रवेश निषिद्ध कर दिया. अगले वर्ष १९३३ में आर्य समाज का गौरव पंडित रामचंद्र देहलवी जी के भाषण पर आपत्ती उठाकर उनपर अभियोग चलाया गया. कुछ समय बाद यह अभियोग वापस लिया गया. पंडित रामचंद्रजी देहलवीजी का प्रवेश निषिद्ध ठहराया गया और राज्य में ओम का झंडा मंदिर से उतारे जाने लगा. आर्य समाज मंदिर और हवन कांड की तोड़फोड़ होने लगी. आर्य समाज का पवित्र ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश छिन लिया जाने लगा. उदगीर, बस्वकल्याण, उमरगा, धाराशिव, गुंजोटी, किल्लेधारूर, लातूर, औसा, नळदुर्ग, गुलबर्गा, हैद्राबाद, निजामाबाद ऐसे कई जगहों पर हजारो आर्य विरों को झुठे अपराध लगाकर निजाम सरकार ने अभियोग चलाया. हिंदूओ को दुर्दशा को कोई सोमा न थी. निजाम सेना, रझाकार, दिनदार सिद्धीक, खाकसार पार्टी और मजलीसे-ए-इतिहादूल मुसलमान ने रिसायत में गरीब हिंदुओ को डरा धमकाकर धर्म परिवर्तन करवाते थे. हिंदूओ को त्यौहार मनाने कौ अनुमति लेनी पड़ती थी. हिंदू-मुसलमान का त्यौहार एक ही दिन आता तो हिंदू को त्योहार मनाने की अनुमति नही मिलतो थी और मुसलमानों को ही अनुमती मिलती थी.

 

२० सितम्बर १९२१ में निजाम सरकार ने एक आदेश निकाल करके गश्ती निशान ५३ के नुसार सामाजिक, धार्मिक और शैक्षिक सभा लेने के लिए निबंध लगाये. ऐसे हालात में हैद्राबाद रियासत में प्रजा को दुर्दशा हो रही थो. इसके विरोध में आर्य समाज ने सत्याग्रह आरंभ किया तो हैद्राबाद स्टेट काँग्रेस ने अपना आन्दोलन बंद कर दिया. आर्य समाज ने अपने शान्तिप्रियता के साथ आन्दोलन को आगे बढाया रखा. निजाम सरकार को मनाने और अपनी नीति सुधारने के लिए आर्य समाज ने कोशिश की. निजाम ने (एक नहीं सुनी और अपनी नीति सबसे अच्छी धर्मनिरपेक्षता और उदारता है यह सबको बताने की कोशिश को. इसलिए प्रो.सुधाकरजी आर्य प्रतिर्निधि सभा के मंत्री स्वयं हैद्राबाद रियासत में आकर निजाम सरकार से बातचीत को. इसका कोई परिणाम नहीं हुआ. १९३४ में सार्वदेशिक सभा द्वारा एक शिष्टमंडल हैद्राबाद रिसायत में आकर आर्य समाज मंदिर में व्याख्यान देने लगे. तभी रियासत में हिन्दुओं के हाल का उन्हे परिचय हुआ. शिष्टमंडल ने भ्रमण करके स्वामी स्वातंत्रतानन्द सरस्वती ने सत्याग्रह की भूमिका तयार कौ. रियासतवासी पंडित नरेंद्रजी और महात्मा नारायण स्वामी जी सत्याग्रह के पक्ष में नहीं थी इसीलिए रियासत के आर्य समाजीयों के कार्यकर्ताओं को बैठक बुलाई गयो जिसमें अन्याय अत्याचार का लेखाजोखा लिया गया तो एक बैठक में स्वामी स्वातंत्रतानन्द सरस्वती जी ने कहा, पानी सर से गुजर चुका है. आप लोग सब ऐसी परिस्थात पैदा कर दो को अत्याचारा का प्रतिकार करने के लिए 'सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा" सत्याग्रह करने के लिए विवश हो जाय.' इन शब्दो को सुनने के बाद रियासत में आर्य समाजीयों को नयी दिशा मिल गई. सत्याग्रह करने के लिए आर्य समाजी सक्रिय हुए फिर भो महात्मा नारायण स्वामी और अन्य कुछ लोग सत्याग्रह के लिए तयार न थे. १६ दिसम्बर १९३८ में आर्य प्रतिनिधी सभा हैद्राबाद राज्य के मंत्री अंड.भाई श्यामलालजी आर्य को बिदर को जेल में विष प्रयोग से उनकी हत्या कौ गयी. १९ दिसम्बर १९३८ अंतिम दाहसंस्कार के समय श्मशानर्भूमि में ही महात्मा नारायण स्वामी जी ने आर्य समाज के धोरज का बांध अब टूट चुका है. अब आर्य समाज अन्याय के प्रतिकार के लिए सत्याग्रह करेगा. भाई श्यामलालजी आर्य के मृत्यु के पूर्व सत्याग्रह समिति का कोई भी सदस्य सत्याग्रह के पक्ष में नहीं था. तभी स्वामी स्वातंत्रतानन्दजी ने एक प्रेस में दिए वक्‍तव्य का व्यापक परिणाम पड़ा, रिसायत में निजाम पर पडा और निजाम ने अलग-अलग तरिके से सत्याग्रह बंद करने की कोशिश की पर उसके हाथ नाकामी आयी. 

दिसम्बर १९३८ में रिसायत के बाहर सोलापुर में आर्य महासम्मेलन का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन के लिए श्री.गणपती सिद्धरामय्या और श्री.महावीर पाटील ने २५ एकड़ जमीन बिना किराये दे दी. सम्मेलनल के सभापति (अध्यक्ष) महाराष्ट्र के जाने माने राष्ट्रीय नेता श्री.माधव श्रीहरी अणे को चूना गया. वे आर्य समाजी नहीं थे यह इस सम्मेलन कौ खास बात थी. आपने भाषण के प्रारम्भ में कहा-'मैं स्वयं आर्य समाजी नहीं हूँ और इसी आधार पर मैं स्वागत समिति के निमंत्रण को अस्वीकार कर सकता था. परन्तु वर्तमान स्थिति पर गहरी दृष्टि डालने से मुझे अनुभव हुआ है कि यह निमंत्रण केवल रिवाजी नहीं है. वरन्‌ एक कर्तव्य का आव्हान है! जिसे स्वीकार करना मेरा कर्तव्य है.' यह सम्मेलन असफल हो इसके लिए निजाम सरकार को सहानुभूति रखने वाले मुसलमानां ने प्रयास किए परंतु सम्मेलन सफल हुआ. इस सम्मेलन के लिए श्री महात्मा नारायण स्वामी, श्री स्वामी स्वातंत्रतानन्द सरस्वती सोलापुर आके पूरी सुरक्षा के साथ सम्मेलन यशस्वी होना जरुरी था क्योंकि सम्मेलन में प्रस्ताव संख्या पौच पारित करके सत्याग्रह की घोषणा होनी थी २५, २६, २७ और २८ दिसम्बर १९३८ में सोलापुर में आर्य सम्मेलन संपन्न हुआ. पांच प्रस्ताव पारित हुए और श्री महात्मा नारायणस्वामी जी को गुलबर्गा में सत्याग्रह करने पर कारावास में जाना पड़ा. जेल जाने से पहले हो श्री महात्मा नारायण स्वामीजी ने स्वामी स्वातंत्रतानन्द सरस्वती जी को सत्याग्रह ना करने का आदेश दिया. हैद्राबाद सत्याग्रह का संचालन करते हुए स्वामी स्वातंत्रतानन्द जेल जाना चाहते थे उसी की तयारी कर ली थी. वे वेदानन्दजी ने श्री महात्मा नारायण स्वामीजी का आदेश याद करवाया तो सत्याग्रह न करते हुए सत्याग्रह संचालन करते रहे. हर दिन सार्वदेशिक सभा कार्यालय में टेलीफोन करके रिपोर्ट देते थे. कुशलता, बुद्धीचातुर्य का परिचय और आर्य समाज से प्रभावित करके सत्याग्रह का सफलता मार्ग आगे बढाया. हिंदूओ को उत्साहित करने के लिए कार्य करते रहे. पैर में जुता नहीं, चारपाई पर सोना नहीं, जो भी रुखा सुखा खाना मिले उसी को ग्रहन करके संचालन करते रहे. विजय पाने के लिए स्वामीजी ने गुप्तचर विभाग की स्थापना को उसमें केवल अँंड.भाई बन्सलीलालजी को विश्‍वस्त का कार्य मिलता था. यह बात गुप्तचर विभाग में काम करने वाले श्री.झुमरलाल जी (किल्लेधारूर) ने बताई. सत्याग्रह में जोश भरने के लिए स्वामीजी महर्षी दयानंद सरस्वती, रामप्रसाद बिस्मील, छ.शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, वीर बंदा बैरागी, हकीकत राय, पंडित लेखराम और स्वामी श्रद्धानंद जी की कहानी सुनाकर प्रेरित करते थे. रणभूमि में भेजते थे. सिर पर कफन बांधले निकलो ऐसे कथन स्वामीजी बोलते थे. उसका प्रभाव प्रजा पर पड़ता था. निजाम सरकार ने भारत सरकार को प्रिसीज प्रोटेक्शन के तहत बाहर के राज्य से सत्याग्रही को हैद्राबाद रियासत से दूर रखने का असफल प्रयत्न किया. अनेक प्रयत्नों के बाद सोलापुर शिबीर उठाने का आदेश दिया. तो स्वामी स्वतंत्रतानन्द सरस्वती ने शिबीर अहमदनगर में शुरु किया और कार्य अहमदनगर से शुरु किया लेकिन स्वामीजी सोलापुर में रह कर कार्य करने लगे. निजाम ने हैद्राबाद रियासत के हिंदू और सत्याग्रही को डरा-धमकाने के लिए सोलापुर में बम्बई प्रदेश मुस्लिम लीक का अधिवेशन आयोजित किया उसी की अध्यक्षता पंजाब प्राप्त के मुख्यमृंत्री सर सिकंदर हयात खाँ ने की. हालाकी उनका मुस्लिम लिग से संबंध नहीं था, ना वे लिंग के नेता थे. केवल आर्यसमाजी प्रजा को डराने के लिए मुस्लिम लिंग का सम्मेलन आयोजित कर सर सिकंदर हयात खा के सत्याग्रह विरोध एक दिखावा था. पंजाब राज्य ने निजाम रियासत कि रक्षा के लिए प्रिंसीज प्रोटेक्शन अँक्ट पंजाब राज्य ने बनाया तो स्वामी स्वतंत्रतानद महाराज घबराये नहीं वैसे तो पंजाब आर्य समाज का गढ़ रहा है और मंत्रो महोदय और निजाम सरकार आर्या पर गंभीर प्रहार करना चाहता था. महात्मा नारायण स्वामीजी के पश्‍चात राजस्थान केसरी कुंवर चांदा करण जी सर्वाधिकारी बनकर जेल गये. सिकंदर हयात खौं कि चुनौती स्वीकार करके आर्य प्रादेशिक सभा के प्रधान श्री महाशय खुशहालचन्द्र तिसरे सर्वाधिकारी बने. पत्रकार शिरोमणी महाशय कृष्ण जेल सर्वाधिकारी बनकर गये तो निजाम सरकार की कमर ही टूट गयी. हरिद्वार गुरुकुल कांगडी से १५ विद्यार्थी का एक जत्था हैद्राबाद रियासत में आया. एक-एक करके अनेक जत्थे रियासत में शामिल हुये और आर्या का प्रभाव बढने लगा तो निजाम ने काशी के हिन्दू बिश्‍वविद्यालय को एक लाख रुपये का दान देने को घोषणा को. इसका मतलब था कि मदन मोहन मालवीय जी को इस सत्याग्रह से दूर रखने की कोशिश को किंतु सत्याग्रह आगे बढ़ता रहा तभी 'रहबरे दक्कन* नामक पत्रिका में हिंदुओं के प्रति घृणा व द्वेष की नीति का परिचय छपवाया. तभी महात्मा गांधी सत्याग्रह के पक्ष में आये. रियासत में उल्लाहा अकबर का नारा सुनकर हिंदुओ का दिल दहल जाता. में पूजा, शंख बजाना बंद हो गया. निजाम के अत्याचारा कौ निन्दा करने का साहस किसी में भी न थी.

 

आर्य समाज ने जो सात्याग्रह शुरू किया था उसने प्रचंड रूप धारण किया और आर्य वीर, अबला, वृद्ध और बाहर से आये आर्य समाजीयों ने अधिकार और अस्तित्व की रक्षा के लिए जो कदाम उठाये उससे सार्वदेशिक सभा एवं युद्ध समिति के लिए समस्या खड़ी हो गयी और १५ जुलाई १९३९ में सार्वदेशिक सभा ने सत्याग्रहीयो को सक्त आदेश दिये और सत्याग्रहीयो भती शुरु हुई. १८ वर्ष से कम ६० वर्ष से ज्यादा, दुर्बल और रोगी को शामिल ना करे. इस आदेश का पुरा पालन हुआ. यही पर निजाम सरकार और उनके समर्थकों ने हिंदू-मुसलमान प्रश्‍न बनाने का भरपूर प्रयत्न किया. तभी राजस्थान से श्री फैजअली तथा कुछ मुसलमानां ने अन्याय के प्रति सत्याग्रह में भाग लिया और पुरा माहौल बदल गया. भारत के अनेक नेता सत्याग्रह को देखकर सहायता करने लगे. 'दी लीडर' प्रयाग के संवाददाता के प्रश्‍न को उत्तर देते हुए श्री उपाध्याय जी ने कहा कि 'अभी तो सात सर्वाधिकारी निकले है. ३५ को सूर्चि तैयार है. अपनी-अपनी बारी को सभी प्रतिक्षा कर रहे है. संपूर्ण वातावण निजाम के विरोध में निर्माण हुआ था. भारत के गृहमंत्री सरादार वल्लभभाई पटेल ने हैद्राबाद रियासत में हो रहा अन्याय अत्याचार कि जिमेवारी निजाम सेना, रझाकार, खाकसार पाटी, दिनकर सिद्योक यह संघटन थे और निजाम उनको सपोर्ट करता था उनका अत्याचार बढ़ता रहा तो आर्य समाज का संघटन मजबूत और बड़ा होता गया. शुरु में इसी सत्याग्रह को किसी का भी सपोर्ट नहीं था किंतु बाद में सबका सहकार्य मिला और १३ सितम्बर १९४३ में भारत सरकार ने हैद्राबाद रियासात पर पुलिस कारवाई कौ. इसी घटना को इतिहास में 'ऑपरेशन पोलो' के नाम से जाना जाता है. पुलिस कारवाई का प्रमुख संचालक लेफ्ट. जनरल महाराज राजेन्द्र सिंहजी थे. उनके मार्गदर्शन में भारतीय जवानां ने (१७ सितम्बर १९४८ में श्याम पाच बजे) आक्रमण के सामने रझाकार और निजाम सेना टिक नहीं पाई और १७ सितम्बर १९४३ के श्यास पाच बजे निजाम मोर उस्मान अली खान बहादूर ने अपने हैद्राबाद रेडीओ से युद्ध समाप्ति की घोषणा की और सियासत के लष्कर प्रमुख जनरल अलु ईदुस (अल इद्रीस) ने हथियार नचे किये और हैद्राबाद के तानाशाह निजाम का पराजय हुआ. विजयी मौके पर गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा कि, “यदि आर्य समाज १९३८-३९ में निजाम के हैद्राबाद रियासत में सत्याग्रह नहीं करता तो हैद्राबाद स्वतंत्र भारत का अंग कदापि न बन पाता.' पंडित नरेंद्र जी ने 'कहा-'सत्याग्रह रक्षा समिति के संचालक लोह पुरुष पूज्य स्वामी स्वतंत्रतानन्द महाराज थे. आपने समस्त भारत का भ्रमण कर जनता एवं काँग्रेसी नेताओं को भी आर्य समाज के सत्याग्रह से परिचित कराया. आपके कुशल नेतृत्व से आर्य सत्याग्रह नियंत्रण में अग्रेसर हो सका. आपकी योग्यता और निष्ठा के परिणाम स्वरूप सत्याग्रह सफलता को प्राप्त कर सका..' आर्य समाज जब विजयी हुआ तो दिल्ली में सत्याग्रह के फिल्ड मार्शल स्वतंत्रतानन्द जी का श्रद्धा और उत्साह से अभिनन्दन किया तो सेनानी ने उत्तर देते हुए कहा कि-'मेरे पिताजी ने मुझे संन्यासी के रूप में देखकर कहा था कि मै तो तुझे कर्नल-जर्नल बनाना चाहता था परंतु तुने संन्यास लेकर कुल को कलंकित कत कर दिया है.. कुल के लोग सामान्यत: कर्नल-जर्नल ही बन सकते परंतु आर्य समाज ने तो निश्‍चय ही मुझे फिल्ड मार्शल बनाकर दिखा दिया है.'

 

कार्य करने का जज्बा ऐसा था कि खाना और सोने का कोई टाईम न रहने की वजह से उन्हे जिगर का कैंसर हुआ. मुंबई के शेठ प्रतापसिंह सुरजी के चिकित्सालय में ३ अप्रैल १९५५ में स्वामी स्वतंत्रतानन्द जी को मृत्यु हई.

निष्कर्ष

१. निजाम मौर उस्मान अलीने स्वतंत्र रहने के लिए धर्म का आधार लिया.

२. निजाम सेना, रझाकार, खाकसार पार्टी हिंदुओं पर अत्याचार करती थी.

३. दिनदार-सिद्योक ने हिंदुओं को धर्मांतरित करके मुसलमान बनाने को दिक्षा दी.

४. निजाम के खिलाफ आंदोलन के लिए आर्य समाज ने हिंदुओं को संघटित किया.

५. स्वामी स्वतंत्रतानन्द सरस्वती जी ने हैद्राबाद सत्याग्र का योग्य संचालन किया.

 

 

१. पंडित नरेंद्रजी हैद्राबाद के आर्यो की साधना और संघर्ष, पृ.१६

२. स्वामी स्वतंत्रतानन्द आर्य समाज के महायान, पृ.२९५

३ प्रा.जिज्ञासु राजेन, स्वामी स्वतंत्रतानन्द सरस्वती जीवन चरित्र, पू.१४०

४.  प्रा.जिज्ञासु राजेन, वीर सन्यासी स्वामी स्वतंत्रतानन्द, पृ. ४७

५. आचार्य सत्यानन्द नोष्टिक-आर्य समाज का हैद्राबाद सत्याग्रह और निजाम जेलों को यातना, पृ.९६

६. अनिल कठारे, हैद्राबाद राज्याचा इतिहास, पृ.१७

७. क्षितिज वेदालंकार, निजाम को जेल में, पृ.११


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