Aksharvigyan-अक्षरविज्ञान

4 - क्या मनुष्य पशु श्रेणीका है ?

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क्या मनुष्य पशु श्रेणीका है ?

बन्दर और गोरेला (वन मनुष्य ) की बनावट में उतना अन्तर नहीं है जितना गोरेला और मनुष्य में अन्तर है, और यह अन्तर ऐसा है, जिसको विज्ञान कभी भी एक न होने देगा । सुनो !

संसार में मनुष्य को छोड़कर जितने प्राणी है किसी के भी बालों में रंग और बनावटका वैसा परिवर्तन नहीं पाया जाता जैसा मनुष्यों के बालों में । जो गाय सफेद होती है, आजीवन सफेद ही रहती है । जो घोडा लाल होता है, आजीवन लाल रहता है । जो बन्दर भूरा होता है, भूराही रहता है । और जो वनमनुष्य जिस रंगका होता है, आजीवन उसी रंग का रहता है । पर मनुष्य के बालों का रंग चारबार पलटता है । पैदा होनेपर भूरे, फिर काले, तब सफेद और अन्तमे पिंगल हो जाते है । मनुष्य का बालों के साथ क्या सम्बन्ध है ? इस बात का उत्तर देना भारतवर्ष के अतिरिक्त और किसी देशके पण्डितका काम है । वेद मे लिखा है कि :-

"
बृहस्पतिः प्रथमः सूर्यायाः शीर्षे केशाँ अकल्पयत् । अथर्व 14/1/55 "

अर्थात् ' बुद्धि तत्त्वने पहिले ही सूर्य के द्वारा शिरमे बालों को पैदा किया ' मनुष्य का शिर आकाशकी ओर है, आकाश जिसको द्यौ, अग्नि, बृहस्पति आदि कहते है बुद्धि तत्त्वको प्रकाशक और सूर्यकिरणों के द्वारा बुद्धि तत्त्वको मनुष्य के शिर में पहुचाना है । अब निर्णय होगया है कि ईथर (आकाश) ही सूर्यको भी प्रकाश देता है और ईथरही विद्युत को भी पैदा करता है । विद्युत से और केशों से कितना सम्बन्ध है वह कहने की जरुरत नहीं है । केशोंपर विद्युत का असर बहुत ही शीघ्र पडता है । केशों में एक डंडी रगडकर कागजके टुकड़े के पास लेजावो कागज खींच कर डंडी में आजायेगा । जबसे बच्चा ज्ञान प्राप्त करने लगता है तभीसे बाल श्याम ( काले ) रंगके होजाते है । श्याम रंगपर सूर्यका प्रकाश कितनी जल्दी पडता है यह भी कहने की जरुरत नही हैं ।(
साइंस के जानने वाले सब जानते हैं कि रंगों के अभाव का नाम श्याम और सब रंगों का एकत्र होना सफेद है। जब कोई रंग नहीं रहता तब रात होती है और जब सब रंग होते हैं तो उसे दिन कहते हैं - खाली स्थान में जिस प्रकार पानी और वायु घुसती है इसी प्रकार श्यामता में प्रकाश शीघ्रता से घुसता है। इस थ्योरी के अनुसार गायत्री मन्त्र से शिखा बन्धन भी खाली इल्लत नहीं है।) इस विवरण से समझ सकते हो कि जिनके बालों का रंग नहीं बदलता ऐसे बप्दर और वनमानस कभी मनुष्य के बुजुर्ग हो सकते है ? कभी नही । (मनुष्य के शरीर भर के केशों का रंग बदलता है, क्योंकि उसके शरीर भर के ज्ञान-तन्तु अधिक बुद्धिमानी से काम करते हैं।)

जिस प्रकार बालों की विचित्रता आपने पढ़ी उसी प्रकारकी विचित्रता मनुष्य में एक और है । वह यह कि मनुष्य पानी में बिना सिखलाये हुए नहीं तैर सकता । एक चींटीसे लेकर पशु, पक्षी, कीट, पतंग यहाँ तक कि बन्दर भगवान भी पानी में डालते ही तुरन्त तैरने लगते हैं, एक क्षणभर भी यह नाविकज्ञान किन्तु महाज्ञान सीखपे के लिये उनको किसीका सहायताकी आवश्यकता नहीं होती । किन्तु मनुष्य महाराज को तैरना बिना सिखाये नहीं आता, यही कारण है कि हरसाल अनेक मनुष्य जल में डुबकर मर जाते हैं । तैरना ही क्या, मनुष्य को बिना सिखलाये कुछ भी नहीं आता । पर अन्य प्राणियों को उनके निर्वाह का सभी ज्ञान बिना किसी गुरु के वंश परम्परानुसार होता चला आता है । किन्तु हाँ, मनुष्य स्वप्न में उडता और तैरता अवश्य है । स्थलके प्राणी जागते हुये तेर लेते हैं और मनुष्य स्वप्न में उड लेता है, यद्यपि इस लोक में इन दोनों विद्याओं की शिक्षा दोनो मे से किसी को नहीं दी गई । क्या कृपा कर युरोप के विद्वान इसका कारण कह सकेंगे ? कमी नहीं । युरोप के क्या सारे संसार के लोग इन बातों का उत्तर नहीं दे सकते । पर भारत ! वह तो ऐसै प्रश्नों के उत्तर देने के लिये ही राजपाट व्यापार कलाकौशल छोड़कर सन्यासी बना बैठा है ।

लीजिए उत्तर सुनिये । यह कौतुक पुनर्जन्म का ज्वलन्त दृष्टान्त प्रमाण और प्रत्यक्ष अनुभव है । अनेकों जन्म जन्मान्तरों मे प्राणियों ने नाना प्रकारकी योनियों में प्रवेश किया है, समय पडने पर वही संस्कार जाग्रत हो जाते है और प्राणी जल में पडते ही, मनुष्य सोते सभय संकट में पडते ही तैरने और उडने लगता है । किन्तु मनुष्य अपनी इस देहके साथ बिना सिखाये कुछ भी नहीं कर सकता ।(१. यह प्रबल प्रमाण है कि मनुष्य को आदि सृष्टि में ईश्वर की ओर से ज्ञान और भाषा दी गई अन्यथा वह बिना गरु के कछ भी न सीख सकता।)

अब इस घटना को विकासवाद के साथ मिलाकर हम प्रश्न करते है कि " मनुष्य के पिता बन्दर देव तो तैरना जाने, पर यह विकास को प्राप्त हुआ उनका पुत्र ' मनुष्य ' जो अधिक उन्नत समझा जाता है तैरना नही जाने । इसका जवाब क्या है " , ? इसी प्रकार वृक्षों की खुराक प्राणनाशक वायु और प्राणियों की खुराक प्राणप्रद वायु है, वृक्ष प्राणप्रद वायु देते है और मनुष्य प्राणनाशक वायु देते है । वनस्पति और प्राणियों से भी कोई जीवन सम्बन्धी अथवा सामाजिक वा शृंखला सम्बन्धी मेल नहीं मिलता । तब विकासवादी क्रम क्रम उन्नति सिवा बच्चों के खेलके और क्या कही जा सकती है ?

इन तीन दृष्टान्तो से दिखला दिया गया कि मनुष्य पशुओं से और प्राणि वर्ग वनस्पतियों से कुछ भी सम्बन्ध नहीं रखते ह आगे चलकर दिखलाते कि युरोप के पण्डितों को अँधेरी रात में क्यों ठोकर खानी पड़ी है ।

यूरोप के विद्वानों को प्राणियों और वनस्पतियों की सन्धियों को देखकर जो धोखा हुआ है इस जगह उसका थोड़ा-सा वर्णन करके उसके समाधान के साथ पहले प्रश्न के उत्तर को समाप्त करेंगे।

योरोपीय विद्वानों को धोखे में डालने वाली बातें 

जिस प्रकार मनुष्य ओर वनमनुष्य को देखकर दोनों के एक होने का सन्देह होने लगता है, उसी प्रकार चमगादड़ (BAT) को देखकर पशु, पक्षियों की श्रूड्डला में विचार होने लगता है और मछली तथा पक्षी, सूस और भैंस को देखकर भी सन्देह होने लगता है। इसी प्रकार 'नागबेल' (नागबेल वह वनस्पति है, जो सुवर्ण के तारों की भाँति वृक्षों में लिपटी रहती है। उसकी जड़ को भूमि की दरकार नहीं होती। वह दूसरे वृक्ष के ही ऊपर सर्प की भाँति रेंगती रहती है। उसी को खाकर खुद बढ़ती और सन्तान बढ़ाती है, टूट जाने पर टूटा हुआ टुकड़ा अलग एक लता बनकर अपना विस्तार करने लगता है। यद्यपि यह वनस्पति सर्पादि जन्तुओं से बहुत कुछ मिलती है इसे नागबेल कहते भी हैं पर वनस्पति के गुण आधे से अधिक हैं इसलिये इसे वनस्पति ही कहते हैं।) और सर्प के मिलान तथा अन्य सहस्रों वनस्पति और कीटों को देखकर निर्णय ही नहीं होता कि इसे कीट कहें या वनस्पति ?(बहुत से कीटाणु और वनस्पति पुदूल एक ही प्रकार के होंते हैं। किसी प्रकार भी निश्चय नहीं होता कि इन्हें वनस्पति श्रेणी में रखें या कृमि कीट जन्तुओं की श्रेणी में।) ऐसी दशा में एक बार यह ध्यान आये बिना नहीं रह सकता कि क्‍या यह एक रूपता की ही बहुरूपता है और वास्तव में एक-दूसरे से उतना ही सम्बन्ध है, जितना कि बाप का बेटे से। परन्तु जरा गहरी नजर से देखने पर और पुनर्जन्म के सिद्धान्त पर विचार करने से सारी उलझन सुलझ जाती है और मामला बात की बात में साफ हो जाता है। 

आप सारी चेतन सृष्टि का एक सृष्टि नियम के द्वारा विभाग करें तो उनकी शारीरिक रचना के मुताबिक तीन महाभाग होंगे। पहले खड़े शरीर वाले अर्थात्‌